Lakshya Narbariya Quotes

 Lakshya Narbariya द्वारा जिंदगी के विभिन्न  विषयों पर अनेकों स्वलिखित सुविचार दिये है जो निम्नलिखित है।


1. ज्यादा विचार अचार बनाता हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

2. तुम्हे किसने कह दिया महिलाओं में कुछ खराबी हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

3. मानवीय ज्ञानों फ़सकर आप सर्कस के शेर बन गये है लेकिन आप ज़िंदगी के असली शेर हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

4. शिक्षा देकर दुनिया को मूर्ख बनाया जा सकता हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

5. समाज के कुछ असामाजिक तत्व आपके अच्छे कार्यों से जलेंगे तो आप उन्हें जलने देना फिर राख बनने के बाद ऑनलाइन Rs.250 पांव बेच देना। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

6. नेटवर्क मार्केटिंग जीवन के अनेक पहलु से सम्बंधित हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

7. समग्र विकास ही असली लीडर उत्पन्न करता हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

8. एक समय ऐसा भी आता है जब भविष्य को सुरक्षित करने के लिए पुरानें इतिहासों को किताब में बदलते की जरुरत होती हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

  

9. जब कोई शब्द इंसानियत पर हाबी हो जाएं तक उसका अस्तित्व मिटाने के लिए एक नये शब्द का ईजाद कर देना चाहिए लेकिन वह उसी भावना का संचरण करें। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

10. संप्रदाय ही इंसानियत बचाते है और संप्रदाय ही इंसानियत मिटाते हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

11. महिलाएं चाहे तो पूरी दुनिया मुठ्ठी में भरलें। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

12. वो दिन दूर नहीं जब हम पायेंगे कि महिला तथा पुरुष के बीच वैसी ही जंग होगी जो आज दो सम्प्रदायों के बीच चल रहीं है। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

13. विवाह करने से कोई तुम्हारा पिया हो जाता है ? 7 क्या तुम 700 चक्कर लगा लो, तो भी कोई तुम्हारा पिया नही हो सकेगा। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

14.  नर एवं नारी समान नही बल्कि असमान हैं। एक दूसरे से भिन्न है क्योंकि परिपूरक हैं। जैसे चुंबक के N व S. लेकिन जिस प्रकार की शिक्षा महिला सशक्तीकरण के नाम पर नारियों को दी जा रही है उससे केवल महिला के भीतर एक पुरुष व्यक्तित्व का निर्माण हो रहा है। अतः इस शिक्षा से जो महिलाएं शिक्षित होकर निकल रही है वह एक स्वस्थ पुरुष से संबंध स्थापित करने में असमर्थ होगी, क्योंकि सारा आकर्षण खो चुका होता हैं। आकर्षण सदैव विपरीत से होता हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

 

15.  हर समय खुश नहीं, बल्कि वास्तविक रहो। खुश तो खुश और दुखी तो दुखी रहो। ऐसा नहीं कि दुखी है और खुश दिखा रहे है, ऐसे नकलीपन के कारण आपका पूरा व्यक्तित्व ही नकलीपन से छा जाएगा। और नकली लोग आत्मा से परिचित न हो सकेंगे। सत्य भी न जान पाएंगे। उपरोक्त गलत स्टेटमेंट इसलिए फैलाए जाते है ताकि बड़े शोषक तुम्हारा शोषण करते रहे और तुम्हे खुश भी रखें, नकली में ही सही। क्योंकि तुम्हारे खुश रहने से तुम्हे भी खुश होने का भ्रम हो जायेगा। लेकिन भ्रम सत्य नही है। इसलिए मनोवैज्ञानिक भी अधिकांश समस्या सुलझा नहीं पाते क्योंकि लोगों के व्यवहार बहुत ज्यादा नकली हो गए हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


16. आप एक आत्म है। और आपका बेटा या बेटी भी एक आत्म हैं। यहां प्रत्येक व्यक्ति एक आत्म हैं। चूंकि, आत्म अजर और अमर है अर्थात् उसका जन्म या मृत्यु नही होती है। तो आपके घर पैदा हुआ आत्म कैसे आपका बेटा या बेटी हो सकते है। क्योंकि वह तो आपके आत्म से पैदा हुआ ही नहीं है। क्योंकि आत्म से दूसरा आत्म पैदा नही होता। केवल दो आत्म के मिलन से तीसरा आत्म माता के गर्भ में शरीर निर्मित होकर आत्म केवल आकर्षित होता है। तो माता–पिता केवल शरीर देते है आत्म नही। लेकिन व्यक्ति शरीर में धारित एक आत्म हैं केवल शरीर नही। अतः कोई किसी का बेटा या बेटी या मां पिता नही है, क्योंकि सभी अलग–अलग आत्म है। जो परमात्मा के अंश हैं। परमात्मा माने ब्रह्मांड की सामूहिक चेतना। अतः यह संसार आत्माओं का घर है। माता पिता का कार्य एक आत्म के लिए शरीर देने के अलावा कुछ भी नहीं। अतः जैसे माता–पिता होंगे, वैसा आत्म उनकी ओर आकर्षित होगा। इस पृथ्वी पर ऊंची चेतनाओं को शरीर देने हेतु प्रेम पूर्ण मां बाप खोजना मुश्किल है क्योंकि समाज में मौजूदा विवाह व्यवस्था प्रेम पर आधारित नहीं हैं इसलिए करोड़ों बच्चे अति भौतिकवादी और मानसिक बीमार पैदा हो रहे है। अतः 21वीं सदी व्यक्तित्व विकास को समर्पित होनी चाहिए। धरती को अग्निवीर के बजाय व्यक्तित्व वीर चाहिए। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


17. समाजसेवक नही बल्कि समाजसुधारक समाज कल्याण करते हैं। सेवक यानी जो मौजूदा व्यवस्था की सेवा करता है यानी उसे बचाने वाला चाहे वह अवैज्ञानिक ही क्यो न हों। आज समाजसेवा के नाम पर सड़ चुकी सामाजिक व्यवस्था को बचाना चाहते हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


18. जिस भी दिन समाज में थोड़ी मनोवैज्ञानिक जागरूकता होगी उस दिन ‘बाल प्रेम विवाह’ पुरुस्कृत होगा और यही स्थिर रह सकता है। साढ़े 17 वर्ष के बाद होने वाले विवाह व्यक्तित्व विकास की दृष्टि से भी अवैज्ञानिक हैं। यही कारण हैं की प्रतिदिन तलाक, बलात्कार, महिला उत्पीड़न, आदि घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। बाजार में बढ़ती शराब और अन्य नशीली वस्तुओं की बिक्री का महत्वपूर्ण आधार मौजूदा अवैज्ञानिक वैवाहिक व्यवस्था है। यदि नशा मुक्त समाज चाहते है तो विवाह की मैथड बदलने की अति आवश्यकता है। जिसने करोड़ों व्यक्तित्व में विकृति भर दी हैं। और ऐसे विकृत व्यक्तित्व भला सृजनात्मक कैसे हो सकते है?  - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


19. इंसान पहले पशु यानी शरीर का विकास, फिर मन का विकास होकर मनुष्य, फिर आत्मा का विकास होकर आत्मन बनता है। प्रेम की पहली अवस्था शारीरिक है, फिर मानसिक, उसके बाद आत्मिक। और यही अवस्थाएं व्यक्तित्व विकास हेतु सही क्रम है। मौजूदा विकास की शिक्षा दूसरे से महत्वकांक्षा को केंद्र बनाती है जबकि केंद्र में प्रेम होना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य विकास करे और प्रत्येक एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करे इन दोनो बातो में बुनियादी फर्क है। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


20. ये न सोचे कि लोग क्या कहेंगे? फिक्र मत करों। बल्कि यह करे कि  फिक्र करो कि लोग क्या कहते है, ऐसे करते–करते तुम्हे एक दिन जीवंत जागरूक गुरु मिल जायेगा जिसके कुछ कहने मात्र से तुम्हारा जीवन बदल जाएगा और वह अमृत प्राप्त हो जायेगा जिसकी तुम्हे प्यास हैं। एक ही क्यों अनेक गुरु बनाओ। पूरी दुनिया को अपना गुरु बना लो। क्योंकि हर व्यक्ति सबकुछ नही जानता लेकिन हर व्यक्ति कुछ न कुछ जरूर जानता हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


21. समाज एक काल्पनिक इकाई है जिसके लिए समाजशास्त्र, समाजशास्त्री और समाजसेवक या सुधारक उपलब्ध हैं। लेकिन वास्तविक इकाई के लिए कोई भी ढंग का शास्त्र, शास्त्री और सेवक या सुधारक उपलब्ध नहीं। वह वास्तविक इकाई व्यक्ति एवं उसका व्यक्तित्व हैं। दुनिया में यदि प्रत्येक व्यक्ति को असल मायनों में स्वास्थ्य को उपलब्ध करवाना हो तो हमें ढंग के व्यक्तित्वशास्त्र, व्यक्तित्वशास्त्री और व्यक्तिवसेवक या सुधारकों की अत्यंत आवश्यकता होगी। तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण संभव हैं क्योंकि समाज व्यक्तियों के एक जोड़ का नाम मात्र हैं।  - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


22. वह जो आपको अपने मौलिक व्यक्तित्व से जोड़ देता हैं उसी का नाम योग हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


23. सामान्य सोच कहती है कि यह संसार आपके पिता या मां की जहांगीर नहीं हैं। जबकि योगिक सोच कहती है कि मैं एक आत्म हूं, जो पत्मात्मा का अंश है। यानी परमात्मा मेरा पिता या मां हुआ। अतः यह संसार मेरा पिता या मां की ही जहांगीर है। जिसको मैं किसी कीमत पर नर्क का स्थान नही बनने दूंगा। मैं किन्हीं राष्ट्र की सीमाओं द्वारा सीमित नहीं क्योंकि मैं अखंड विश्व का नागरिक हूं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


24. 20वी सदी में अंबेडकर ने कहा था कि शिक्षा शेरनी का दूध हैं। और अब 21वीं सदी में लक्ष्य कह रहे है कि अब यह प्रश्न का उत्तर सबको समझ में आ गया है कि शेरनी का दूध जो है वह शिक्षा हैं। लेकिन नया प्रश्न जटिल हो गया है कि आखिर कौनसा दूध शेरनी का हैं। कहीं लोग गलती से गाय या भैस का दूध तो नहीं पी रहे। या फिर पाउडर का मिलावटी पी रहे हैं। तभी तो देश का युवा दहाड़ नही रहा है। जबकि दुनिया में इतनी समस्याएं भरी हुई है। आखिर वह कौनसी शिक्षा है जो शेरनी का असली दूध हैं। तो वह व्यक्तित्व विकास की शिक्षाएं है। जिससे कोई व्यक्ति असल में व्यक्ति बन पाता हैं। व्यक्तित्व की शिक्षाएं मसाले की तरह होती है, वह प्रत्येक व्यक्ति में अद्वितीय स्वाद उभारती हैं। जिनसे यह दुनिया स्वादिष्ट कहलाती है। अतः जो लोग अपने व्यक्तित्व सुख केंद्र को खोज लेते हैं वह दूसरों को भी सुख बाटने के लिए दहाड़ने लगते है। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


25. प्रेक्षक जब वस्तु को देखता है तो उसे वस्तु ज्ञान प्राप्त होता हैं। लेकिन जब स्वयं को देखता है माने कि प्रेक्षक स्वयं को एक प्रेक्षक की दृष्टि से देख प्रेक्षण करें, तो उससे उसे आत्म ज्ञान प्राप्त होता है। और ऐसे आत्म ज्ञानी ही आत्मसिद्ध कहलाते है। परंतु आत्मवान या आत्मसिद्घ होने से पहले व्यक्ति को क्रमशः पशुता, मनुष्यता से गुजरना पड़ता है। एक अबोध प्रेक्षक माने बच्चा, गर्भ से ही प्रेक्षण प्रक्रिया शुरू कर देता है। जैसे–जैसे वह जीवनप्रक्रिया में आगे बढ़ता है वैसे–वैसे ही उसकी प्रेक्षण सारणी में अनुभव प्रविष्ठियां की संख्या बढ़ती जाती है, जिसका वह बुद्धि द्वारा विश्लेषण कर निष्कर्ष निकालने की कोशिश करता है, फिर वह 14 से 17 वर्ष की उम्र में विपरीत लिंग के शरीर का प्रेक्षण में उत्सुक होता है। लेकिन सामाजिक व्यवस्था उसकी प्रेक्षणधारा में प्रतिरोध बनती है। जिससे यह प्रविष्टि लंबित स्टेट्स धारण कर लेती है। जबकि प्रेक्षण धारा अगली प्रविष्टि हेतु जारी रहती है, लेकिन पूर्व स्टेप गलत होने पर अगले स्टेप भी गलत हो जायेगा, जिससे गलत निष्कर्ष मिलेगा। इसलिए इस दुनिया में इतने आत्महीन लोग है क्योंकि उनका प्रेक्षण शरीर या बहुत हुआ तो मन पर जाकर रुक जाता है। इस प्रेक्षण प्रक्रिया का नाम ही ध्यान हैं। और ध्यान से ही व्यक्ति मुक्त होता हैं। लेकिन मौजूदा अर्थव्यवस्था व्यक्ति को कैरियर के पीछे भगा रही हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


26. उच्च जीवन ही उच्च विचार का आधार हैं। सादा जीवन से विचार भी सादे ही आते है। गौतम बुद्ध, महावीर, कृष्ण आदि व्यक्तित्व राजाओं के घर पैदा हुए थे। हां लेकिन कभी कभार कोई गरीब घर में कोई इक्का दुक्का पैदा हो जाता है, वो अपवाद है। शास्वत जीवन की अधिक संभावना वहा होती है जहां सभी भौतिक सुविधाएं मौजूद रहती है। गौतम बुद्ध के घर पर अनुभव हेतु समस्त भौतिक सुविधाएं थी, जिसके कारण उनकी चेतना अधिक विराट हो सकी और जब वह विराट चेतना का प्रकाश प्रेक्षक पर ही परावर्तित होकर पड़ता है तो उससे उतने ही व्यापक स्वरूप में आत्म चमकता हैं। इस चमक से ही प्रेक्षक स्वयं को भी स्वयं से उतनी ही विराट दृष्टि से अलग देख पाता है। जिसे हम दृष्टा भी कहते है। अर्थात जितने अधिक अद्वितीय अनुभव उतनी विराट चेतना। परंतु मौजूदा अर्थव्यवस्था में लोग व्यक्तिगत धन एवं कैरियर में ही जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं, जबकि हमे सभी संसाधन सामाजिक स्वामित्व में कर देने चाहिए जिसमें धन के साथ–साथ आपके बच्चे भी सामाजिक संपति होगे। प्रथ्वी की पूर्ण संपत्ति प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व कल्याण में लगेगी। सेनाओं पर ~70% संसाधन खर्च हो रहें जो कि फिजूल हैं, क्योंकि आजतक कोई भी सैनिक बुद्ध या आत्मवान नही बना। क्योंकि आत्म स्वतंत्रता में पनपता हैं, लेकिन सैनिक शिक्षाएं आपको समूह में समायोजित करती हैं ताकि आप आत्मवान न हो सकें। क्योंकि आत्मवान से हिंसा नही कराई जा सकती। और हिंसा नहीं होगी तो राजनीतिज्ञ कैसे शासन करेगा। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


27. आज रात मैने सपने में देखा कि मैं एक शेर बन गया हू, फिर जब सुबह जागा तो मेरे विचार में आया कि मैं सपने में शेर बन गया था जो जाग रहा था। लेकिन अब जब मैं जाग गया हूं तो कही ऐसा तो नहीं कि वह शेर सो गया हो और उसके सपने में मैं जाग गया हूं। जो यह विचार कर रहा है। क्योंकि जब मैं सो रहा था तो शेर जाग रहा था मेरे सपने में। और अब मैं जाग रहा हू तो शेर सो गया होगा क्योंकि वह मुझे दिखाई नही दे रहा है। शायद वह सपना देख रहा है जिसमे मैं जाग रहा हूं। अतः यह जीवन किसी का सपना भी हो सकता हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


28. जंगल और समाज में अगर मुझे चुनना हुआ तो मैं जंगल को चुनूगा, क्योंकि वहां हर पेड़ अपने स्वभाव के अनुकूल विकास करता हैं। तबकी समाज में हर व्यक्ति समाज के अनुकूल विकास करने को विवश हैं। मौजूदा समाजवाद प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व को खिलने के मार्ग में बाधा हैं। हालांकि जंगल भी पेड़ो का एक समाज का ही नाम हैं लेकिन वह व्यक्तिवाद यानी पेड़वाद  पर आधारित हैं। परंतु मानव का मौजूदा समाज व्यक्तिवाद के बजाय समाजवाद पर आधारित हैं। यदि पूंजीवाद से प्रतिस्पर्धा घटा दी जाएं तो वह व्यक्तिवाद का स्वरूप धारण कर लेगा। तब प्रतिभा तो व्यक्ति की होगी परंतु संपत्ति समाज की होगी। तभी समाज की नई परिभाषा जन्म लेंगी। अर्थात् समाज = सम + आज । सम है आज सभी के लिए। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


29. यदि विश्व में विश्व शांति स्थापित करनी हों तो प्रत्येक व्यक्ति को उसके मौलिक व्यक्तित्व से मिला दीजिए। लेकिन मौजूदा व्यवस्था में 99% लोग वहां पहुंच गए है जहां उन्हें नही होना चाहिए था। जिसका कारण सिर्फ इतना है कि उन्होंने अपने मौलिक व्यक्तित्व के ऊपर किसी अन्य व्यक्तित्व का मुखौटा पहन रखा हैं। बस इसलिए लोग बैचेन हैं, और जहां बैचेनी होगी वहा भला शांति कैसे हो। 21वीं सिर्फ और सिर्फ व्यक्तित्व विकास की सदी होनी चाहिए। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


30. देश–विदेश में रोजगार की चिंताएं की जाती है जो कि 21वीं सदी में बिलकुल फिजूल हैं। अब इस सदी में करियर काउंसलिंग के बजाय व्यक्तित्व काउंसलिंग की आवश्यकता हैं, ताकि प्रत्येक अपने भीतर मौजूद उस अद्वितीय की खोज यात्रा में संलग्न हो सकें। प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रतिभाओं के क्षेत्र में निश्चिंत कार्य कर सकें। सोचिए 800 करोड़ प्रतिभाओं का लाभ समाज को मिलेगा। हम अपनी चेतना के स्तर को कितना बड़ा चुके होगे। प्रतिभा व्यक्ति की होगी और पूंजी समाज के पास। मौजूदा अर्थव्यवस्था में लोग रोटी खोजते है और रोटी का विकास करते है। सोचिए 800 करोड़ लोग रोटी की प्रतिस्पर्धा कर रहें हैं। जिसकी इस वैज्ञानिक युग में कोई जरूरत ना थी। जहां, कैरियर काउंसलिंग = रोटी की खोज व्यक्तित्व काउंसलिंग = जीवन की खोज. - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


31. जीवन संघर्ष नहीं हैं। बल्कि हमारी तथाकथित आर्थिक नीतियां इसे संघर्ष बना रही हैं। विश्व के युवाओं को रोजगार की मांग के बजाय रोजगार मुक्त जीवन की व्यवस्था कैसे निर्मित की जाएं  इसके प्रयास करने चाहिए। अन्यथा इस अर्थ (पृथ्वी) पर कोई भी व्यक्ति परम स्वास्थ्य को उपलब्ध नहीं हो सकेगा। अतः अर्थशास्त्र को इस दृष्टि से देखने की आवश्यकता हैं। ताकि समाज की एक नई परिभाषा विकसित हो सकें। अतः समाज = सम है आज जो सभी के लिए। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


32. मनुष्य को अपनी अंतरात्मा की याद कैसे दिलाई जाएं। ताकि उसे ज्ञात हो जाएं कि उसकी अधिकांश इच्छाएं अस्वाभाविक या अप्राकृतिक हैं। पृथ्वी पर हर व्यक्ति की स्वाभाविक इक्छाओ के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। बाकी अहंकार की पूर्ति के लिए तो 1000 पृथ्वी भी कम पड़ जायेगी। आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता ही पृथ्वी (पृथ्वी=मां=जीवन) को बचा सकने की क्षमता रखती हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


33. जीवन कोई रेखाखंड या रेखा नही हैं बल्कि एक वक्र की भांति हैं। जो सभी लोगों के अद्वितीय हैं, क्योंकि हर व्यक्ति अद्वितीय हैं। अतः उसका जीवन भी दूसरे जैसा नहीं हो सकता। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


34. जीवन को समझना हो तो बुद्धि को मजबूत करें और यदि जीवन को जीना हो तो बुद्धि से निकलकर ह्रदय के जगत में प्रवेश करें। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


35. दुनिया में चारों तरफ लोग एक दूसरे से प्रेम की आशा बनाकर मांग रहे हैं, लेकिन मिलता किसी को भी नहीं। आखिर मिले भी तो कैसे? क्योंकि प्रेम तो सम्राटों को ही उपलब्ध हो सकता हैं, न कि भीकमंगो को। अतः प्रेम मांगने की चीज नहीं है, प्रेम तो होने की चीज हैं। प्रेम किसी को दिया भी नही जा सकता हैं क्योंकि इससे यह आभास होता है कि प्रेम कोई चीज हैं। लेकिन प्रेम कोई चीज नहीं है। प्रेम तो मन की ही एक स्तिथि का नाम मात्र हैं। अतः प्रेम हुआ जा सकता हैं और जो प्रेम हो जाता हैं वह कब दे देता है उसे भी पता नहीं चलता। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


36. साइबर वर्ल्ड, डिजिटल मार्केटिंग और मनोविज्ञान के उत्कृष्ट जानकार तथा आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण व्यक्तित्व ही 21वीं सदी में जीवन को नई दिशाओं में मोड़ सकने के लिए मौजूदा नीतियों एवं व्यवस्था को चुनौती दें सकते हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


37. पृथ्वी पर ~13,865  परमाणु बम हैं, केवल 100 परमाणु बम एक बार में प्रथ्वी को नष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं। ऐसे ~138 बार प्रथ्वी पर मनुष्य को मार डालने की पूरी व्यवस्था है लेकिन मनुष्य को सही जीवन के लिए संसाधन देने की एक भी बार व्यवस्था नहीं हैं। बस यही कमाल है!  - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


38. दुर्भाग्य से दुनियाभर के युवाओं की आत्मा विक्षिप्त और विशुद्ध हो रखी हैं। यदि शुद्ध होती हो भला उन्हें देश, समाज, संप्रदाय आदि किसी भी नाम पर लड़ाया जा सकता था? - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


39. आपके मित्र भी दुश्मन हो सकते है, आपके दुश्मन भी मित्र हो सकते हैं, जरूरी नहीं कि जिसने आपको इतिहास में धोखा दिया वह भविष्य में भी धोखा देगा ही। जीवन प्रतिक्षण बदल जाता है मनुष्य भी बदल जाता है। केवल क्षण की बात हैं। लेकिन स्तिथप्रज्ञ पुरुष हर क्षण एक हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


40. दुर्भाग्य से हम ऐसे विद्यालयों में पढ़ते है जिसकी किताबें प्रेम गीत सिखाती है परंतु व्यवहार में प्रतियोगिता सिखाई जा रही हैं। यही दोहरी व्यवस्था स्टूडेंट की आत्मा को विशुद्ध कर रही हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


41. किसी से पूछिए जिंदगी कैसी चल रही हैं, वह कहते है – कट रही हैं। इन लोगो ने जीवन को महानिंदित कर दिया हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


42. आज पढ़ी लिखी महिलाएं जितनी हैरान, परेशान और बैचेन हैं उतनी तो अनपढ़ महिला भी नहीं हैं। मैंने लोगों को इंजीनियरिंग करके इंजीनियर बनते देखा हैं, लेकिन लोग हाउसवाइफ बन जाते हैं। जिसका उनके पास कोई प्रशिक्षण नहीं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


43. एक पार्क में बैठा एक बूढ़ा आदमी सामने बैठी 40 वर्षीय खूबसूरत महिला को देखे जा रहा था। उस महिला ने बूढ़े आदमी की तस्वीर मांगते हुए कहा कि यह तस्वीर मैं अपने 20 वर्षीय बच्चों को दिखा के डराओगी। इसे कहते है, पर्सनेलिटी मिसमैच। बूढ़ा भी ढंग से बूढ़ा ना हो सका, उसमे अभी जवान बैठा हुआ हैं। क्योंकि जब जवान था पूरी तरह जवान ना रहा उल्टा ऊर्जाओं का दमन किया और अब पूरी तरह बूढ़ा भी न हो सका। प्रत्येक क्रिया की विपरीत और बराबर प्रतिक्रिया अवश्य होती हैं। कह गए न्यूटन। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


44. स्त्रियां ही इस दुनिया को एक प्रेम पूर्ण स्थान बना सकती हैं, क्योंकि प्रेम ही स्त्री की आत्मा का केंद्र हैं। बाकि अब तक हम पुरुष की बनाई इस हिंसक दुनिया के परिणाम देख ही रहे; जहां प्रेम के खातिर सबकुछ उपलब्ध हैं, लेकिन प्रेम नहीं। स्त्री से तात्पर्य स्त्रैण गुणों (मानसिक) से परिपूर्ण व्यक्तित्व से हैं, जो Male या Female कुछ भी हो सकता हैं। स्त्रैण गुण = { प्रेम, करुणा, भोलापन, शीतलता, कोमलता, मैत्री...} - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


45. किसी के दुःख में नहीं बल्कि उसके सुख में जाओ, ताकि सुख में गुणनफल हो जाएं। इस दुनिया में दुःख में जाकर लोग सिर्फ दुःख बढ़ाते चले जाते हैं, कोई सुख को नहीं बढ़ाता है इसलिए तो दुनिया दुखमय हैं। ध्यान रहें कि लोग हमारे दुःख में आएं ऐसी इच्छा इसलिए आती है ताकि हम अपने दुःख को बढ़ा चढ़ाकर बता सके, जिससे हमारे अहंकार को भोजन मिल सकें। हो सकता है कोई इस बात से इंकार करें लेकिन फिर भी मैं कहूंगा यह आपके भीतर की ही गहरी चाह हैं जिसका पता आपको भी नहीं हैं। असल में यदि आप दुःखी है तो लोग कहते है, सब समान्य हैं, ठीक है। लेकिन जब आप बात – बात पे सुखी रहते है तो लोग कहते है कि कुछ गड़बड़ है, ये आदमी पागल हो गया हैं। क्योंकि इस पृथ्वी पे दुःखी रहने की होड़ मची हुई हैं कि देखो मैं भी दुःखी हूं। और मेरा दुःख तो तुमसे ज्यादा बढ़ा दुःख हैं। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया


46. सफलता एक सामाजिक बीमारी है। जो समाज में 99% लोगों को लगी हुई है, वह इस चूहा दौड़ में शामिल हैं। बिरले होते है वह 1% लोग जो सफल होने के बजाय सुफल होना चाहते हैं। अतः प्रेम को केंद्र बिंदु बनाकर निर्मित होने वाला व्यक्तित्व सुफल हैं, जिसके कारण स्वयं के विरुद्ध अहंकार के प्रति युद्ध और हिंसा पैदा होती हैं । जबकि महत्वकांक्षा केंद्र में होने पर प्रतिस्पर्थी व्यक्तित्व निर्मित होता है जिसके कारण बाहरी जगत में युद्ध और हिंसा पैदा होती है। अतः सफलता महत्वहीन है और सुफलता महत्वपूर्ण है। - डॉ. लक्ष्य नरबरिया

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